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एमपी बोर्ड कक्षा 12वीं भौतिकी अध्याय 6 विद्युत चुम्बकीय प्रेरण
MP Board Class 12th Physics Chapter 6 Notes: Class 12th Physics Chapter 6 विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) NCERT solutions पाठ्यपुस्तकों, Previous Year Question Papers और Sample Papers में प्रदान किए गए प्रश्न के व्यापक उत्तर देते हैं। विषय को अच्छी तरह से समझने और Class 12th Physics Chapter 6 को हल करने के लिए, Electromagnetic Induction NCERT Notes छात्रों को नियमित रूप से समाधान का अभ्यास करना चाहिए। NCERT Class 12 के सभी अध्यायों के लिए भौतिक विज्ञान विषय, विषय विशेषज्ञों द्वारा नवीनतम MP Board Syllabus 2020–21 के अनुसार बनाए गए हैं।
Chapter 6 Notes (Electromagnetic Induction)
MP Board Class 12th Physics Chapter 6 Notes: एक चालक के पार एक Electromotive Force का निर्माण, जब यह एक बदलते चुंबकीय क्षेत्र के अधीन होता है, विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहा जाता है। छात्र उस प्रक्रिया को सीख सकते हैं जहां एक कंडक्टर एक अलग चुंबकीय क्षेत्र में तैनात है या एक कंडक्टर एक निश्चित चुंबकीय क्षेत्र के माध्यम से आगे बढ़ रहा है। यह Chapter 6 भौतिकी बताता है कि कंडक्टर में वोल्टेज या इलेक्ट्रोमोटिव फोर्स (EMF) कैसे उत्पन्न होता है।
विद्युत-चुम्बकीय प्रेरण क्लास 12, यह बताता है कि विद्युत प्रवाह कैसे उत्पन्न होता है। छात्र बदलते चुंबकीय क्षेत्र और उससे संबंधित सिद्धांतों से जुड़ी घटना को जान सकते हैं। हेनरी और फैराडे के प्रयोगों, लेनज़ के नियम और ऊर्जा के संरक्षण, चुंबकीय प्रवाह, प्रेरक इलेक्ट्रोमोटिव बल, एड़ी वर्तमान, अधिष्ठापन आदि जैसे विषयों के समाधान भी इस अध्याय में चर्चा की गई है।
Also, Check – Physics Chapter 5 Notes
MP Board Class 12th Physics Chapter 6 Notes (Electromagnetic Induction)
अध्याय- 06
विद्युत-चुम्बकीय प्रेरण
[Electromagnetic Inducation]
MP Board Class 12th Physics Chapter 6 Notes
प्रश्न -01) चुंबकीय फ्लक्स किसे कहते हैं ? इसका मात्रक लिखिए।
उत्तर – चुंबकीय क्षेत्र में स्थित किसी पृष्ठ से उसके तल के लंबवत गुजरने वाली संपूर्ण चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की संख्या को पृष्ठ से संबंध चुंबकीय फ्लक्स कहते हैं।इसे अक्षर φ (फाई) से प्रदर्शित करते हैं! S.I. पद्धति में चुंबकीय फ्लक्स का मात्रक बेवर (weber) है व्युत्पन्न मात्रक वोल्ट-सेकेण्ड है तथा C.G.S. पद्धति में मैक्सवेल है|
प्रश्न -02) विद्युत चुंबकीय प्रेरण संबंधी फैराडे के प्रयोगों से प्राप्त निष्कर्ष लिखिए तथा प्रयोगो की व्याख्या कीजिए ?
उत्तर – फैराडे ने अपने प्रयोग में पाया कि –
-
यदि एक कुण्डली तथा चुम्बक को एक – दूसरे के सापेक्ष स्थित रखते है तो कुण्डली के साथ जुड़े धारामापी में कोई विक्षेप नहीं होता है।
-
यदि कुण्डली या चुम्बक को एक – दूसरे के पास लाते है , तो जब तक उनसे सापेक्षिक गति होती है, धारामापी में एक दिशा में विक्षेप प्राप्त होता है।
-
कुण्डली या चुम्बक की गति की दिशा विपरीत करने पर धारामापी में विक्षेप की दिशा भी विपरीत हो जाती है।
-
कुण्डली या चुम्बक की गति तेज करने पर धारामापी में विक्षेप बंद हो जाता है।
फैराडे के प्रयोग की व्याख्या :- फैराडे के प्रयोग की व्याख्या चुंबकीय फ्लक्स के आधार पर की जा सकती है जब कुण्डली तथा चुम्बक एक – दूसरे के सापेक्ष स्थित रहते है तो कुण्डली से संबंध चुंबकीय फ्लक्स नियत रहता है। कुण्डली तथा चुंबक के मध्य सापेक्षिक गति होने पर कुंडली से गुजरने वाला चुंबकीय फ्लक्स बदलता रहता है यदि चुंबक को कुंडली के पास लाते हैं तो कुंडली से संबंध चुंबकीय फ्लक्स का मान बदलता है इसके विपरीत चुंबक को दूर ले जाने पर कुंडली से संबंध चुंबकीय प्लस का मान घटता है फैराडे के अनुसार कुंडली से संबंध चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होने के कारण कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन जितनी तेजी से होता है कुंडली में प्रेरित धारा उतनी ही अधिक होती है चुंबक व कुंडली को एक दूसरे के सापेक्ष स्थिर रखने पर अथवा दोनों को एक ही चाल से एक ही दिशा में गतिशील होने पर कुंडली से संबंध चुंबकीय प्लस में परिवर्तन शुन्य होता है जिससे प्रेरित धारा भी शुन्य होती है।
प्रश्न – 03) विद्युत चुंबकीय प्रेरण से आप क्या समझते हो ? फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण के नियम लिखिए? प्रेरित विद्युत वाहक बल के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए।
उत्तर – जब किसी चुंबकीय क्षेत्र में रखी कुंडली से संबंध चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है जिससे उसमें प्रेरित धारा बहने लगती है इस घटना को विद्युत चुंबकीय प्रेरण कहते हैं
फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण के निम्न दो नियम है।
- जब किसी बंद विद्युत परिपथ से होकर गुजरने वाले चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो उसमें प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है जिससे प्रेरित धारा बहने लगती है यह धारा केवल तभी तक बहती है जब तक चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन जारी रहता है चुंबकीय फ्लक्स बढ़ने पर धारा विपरीत दिशा में उत्पन्न होती है तथा चुंबकीय फ्लक्स घटने पर समान दिशा में धारा उत्पन्न होती है।
- प्रेरित विद्युत वाहक बल का परिणाम चुंबकीय फ्लक्स की परिवर्तन की दर के अनुक्रमानुपाती होता है यदि t समय में किसी बंद परिपथ से संबंध चुंबकीय फ्लक्स का मान φ1 (फाई) से बदलकर φ2 (फाई) हो जाए तो प्रेरित
यहां ऋणात्मक (-) चिन्ह् यह बताता है की प्रेरित विद्युत वाहक बल सदैव चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन का विरोध करता है।
प्रश्न -04) प्रेरित धारा की दिशा ज्ञात करने का लेंज का नियम लिखिए? और समझाइए कि यह नियम ऊर्जा संरक्षण के नियम के अनुकूल है।
उत्तर – लेंज का नियम :- लेंज के नियम अनुसार किसी परिपथ में प्रेरित धारा की दिशा सदैव इस प्रकार होती है कि वह उस कारण का विरोध करती है जिसके कारण वह स्वयं उत्पन्न होती है यह नियम ऊर्जा संरक्षण के नियम पर आधारित है।
लेंज के नियम की व्याख्या :- जब चुंबक के उत्तरी ध्रुव को कुंडली के किसी एक सिरे के पास लाते हैं तो लेंज के नियम अनुसार कुंडली का वह सिरा भी उत्तरी ध्रुव बन जाता है जिसके फलस्वरूप चुंबक और कुंडली के मध्य प्रतिकर्षण बल लगता है इस प्रतिकर्षण बल के विरुद्ध चुंबक के उत्तरी ध्रुव को कुंडली के पास लाने में कुछ कार्य करना पड़ता है यही यांत्रिक कार्य हमें कुंडली में विद्युत ऊर्जा अर्थात प्रेरित धारा के रूप में प्राप्त होता है इसी प्रकार चुंबक के उत्तरी ध्रुव को कुंडली के किसी सिरे से दूर ले जाते हैं तो लेंज के नियम अनुसार कुंडली का वह सिरा दक्षिणी ध्रुव बन जाता है जिसके फलस्वरूप चुंबक और कुंडली के मध्य आकर्षण बल लगता है इस आकर्षण बल के विरुद्ध चुंबक के उत्तरी ध्रुव को कुंडली से दूर ले जाने में कुछ कार्य करना पड़ता है यही यांत्रिक कार्य कुंडली में विद्युत ऊर्जा अर्थात प्रेरित धारा के रूप में प्राप्त होता है इस प्रकार स्पष्ट है कि लेंज का नियम ऊर्जा संरक्षण के नियम के अनुकूल है।
प्रश्न – 05) प्रेरित धारा की दिशा ज्ञात करने का फ्लेमिंग का दाएं हाथ का नियम लिखिए।
उत्तर – इस नियम के अनुसार यदि हम दाएं हाथ का अंगूठा, तर्जनी अंगुली तथा बीच की अंगुली तीनों को एक दूसरे के लंबवत इस प्रकार फैलाए की तर्जनी अंगुली चुंबक के क्षेत्र की दिशा तथा अंगूठा चालक की गति की दिशा की ओर संकेत करें तो बीच वाली अंगुली प्रेरित धारा की दिशा बताएगी।
प्रश्न -06) भँवर धाराएं क्या है? भँवर धाराओं से क्या हानि है? इन्हें रोकने के उपाय क्या है? भँवर धाराओं के उपयोग लिखिए।
उत्तर – भँवर धाराएं :- जब किसी धात्विक टुकड़े से संबंध चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो उसमें प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती हैं यह धाराएं पानी में बनने वाले भँवर की तरह होती हैं इस कारण इन धाराओं को भँवर धाराएं कहते हैं।
हानि :- भंवर धाराएं चूँकि अपने उत्पन्न होने के कारण का विरोध करती हैं अतः इन धाराओं के कारण ऊर्जा का अधिकांश भाग ऊष्मीय ऊर्जा के रूप में व्यर्थ हो जाता है।
रोकने के उपाय :- भंवर धाराओं को रोकने के लिए क्रोड अथवा फ्रेम को ठोस ना लेकर उसे पतली-पतली पत्तियों को एक दूसरे से पृथक कृत करके तथा वार्निश लगाकर एक दूसरे से बनाया जाता है।
उपयोग :-
- चल कुंडली धारामापी को रुद्ध दोल बनने में।
- विद्युत ब्रेक तथा गति मापक में ।
- प्रेरण मोटर में ।
प्रश्न -7) भाॅवर धाराएं क्या है? चल कुंडली धारामापी को रुद दोल बनाने के लिए इनका उपयोग किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर – भाॅवर धाराएं – यदि किसी धातु के टुकड़े को चुंबकीय क्षेत्र में घूमाते हैं या किसी असमानिय चुंबकीय क्षेत्र में चलाते हैं या किसी अन्य प्रकार से उससे होकर गुजरने वाली चुंबकीय बल रेखाओं की संख्या में परिवर्तन करते हैं तो उस धातु चालक के संपूर्ण आयतन में प्रेरित धाराएं उत्पन्न हो जाती है यह धाराएं धातु के टुकड़े की गति का विरोध करती हैं यह धाराएं एक बंद घेरे के रूप में होती हैं इन्हें भाॅवर धाराएं कहते हैं |
चल कुण्डली धारामापी को रुद दोल बनाना – चल कुंडली धारामापी को रुद दोल बनाना या क्षेत्र स्तंभी बनाने के लिए उसकी कुंडली को एलुमिनियम के फ्रेम पर लपेटते हैं चुंबकीय क्षेत्र में कुंडली के विक्षेपित होने पर एलुमिनियम के फ्रेम में भाॅवर धाराएं उत्पन्न हो जाती हैं जो कुंडली की गति का विरोध करके उसे शीघ्र ही विराम अवस्था में ले आती हैं।
प्रश्न -8) भाॅवर धाराएं क्या है ? इसे दर्शाने वाले एक प्रयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर – किसी चुंबकीय क्षेत्र में धात्विक टुकडे से होकर गुजरने वाले चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होने से उससे उत्पन्न प्रेरित धाराओं को भंवर धाराएं कहते हैं यह धाराएं जिस कारण से उत्पन्न होती हैं उसी का विरोध करती हैं।
प्रायोगिक प्रदर्शन- यदि एक चुंबकीय सुई को रेशम के धागे से बांधकर धागे में ऐठन देकर छोड़ दे तो वह घूमने लगती है अब यदि इसके नीचे कांच की प्लेट रखी जाती है तो हम देखते हैं कि सुई की गति अप्रभावित रहती है लेकिन यदि घूमती हुई चुंबकीय सुई की ओर तांबे की प्लेट रखी जाती है तो हम देखते हैं कि सुई शीघ्र ही रुक जाती है । इसका कारण तांबे की प्लेट में भवर धाराओं का उत्पन्न होना है यह भंवर धाराएं चुंबकीय सुई की गति का विरोध करती है जिससे सुई शीघ्र ही रुक जाती है।
प्रश्न -9) स्वप्रेरण से क्या अभिप्राय है ? एक ऐसे प्रयोग का वर्णन कीजिए जिससे स्वप्रेरण प्रभाव प्रदर्शित हो ?
उत्तर – स्वप्रेरण:- किसी परिपथ अथवा कुंडली में धारा परिवर्तन के कारण प्रेरित धारा का उत्पन्न होना स्वप्रेरण कहलाता है।
स्वप्रेरण का प्रायोगिक प्रदर्शन :-
|
स्वप्रेरण का प्रायोगिक प्रदर्शन |
स्वप्रेरण की घटना को चित्र में दिखाया गया है इसमें मुलायम लोहे की एक छड़ c पर तांबे के तार लपेटकर एक कुंडली L बनाई गई है जिसे परिपथ प्रतिरोध R, बैटरी E तथा दाब कुंजी K के साथ श्रेणी क्रम में जोड़ा गया है कुंडली L के साथ समांतर क्रम में एक बल्ब B संबंधित है।
कुंजी K को दबाने पर बल्ब जलने लगता है अब यदि कुंजी K को यकायक छोड़ते हैं तो हम देखते हैं कि कुंजी को छोड़ते ही बल्ब क्षणभर के लिए बहुत तेजी से चमकता है और फिर बुझ जाता है इसका कारण यह है कि परिपथ तोड़ने पर कुंडली में बहने वाली धारा एकदम घटकर शुन्य हो जाती है जिससे कुंडली से सम्बंध चुंबकीय फ्लक्स बहुत तेजी से घटता है तथा कुंडली में स्वप्रेरण के कारण एक क्षणिक किंतु प्रबल प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है जिससे बल्ब चमक जाता है यही कारण है कि बिजली के स्विच को अचानक बंद करने पर प्रायः बल्ब फ्यूज हो जाता है |
प्रश्न -10) स्वप्रेरण गुणांक अथवा स्व प्रेरकत्व से क्या अभिप्राय है? इसका मात्रक और विमीय सूत्र लिखिए।
उत्तर- माना की कुंडली में धारा I प्रवाहित हो रही है तो धारा प्रवाह के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के फल स्वरुप कुंडली से संबंध चुंबकीय फ्लक्स ф (फाई) कुंडली में बहने वाली धारा I के अनुक्रमानुपाती होता है।
अर्थात ф ∝ I
ф = LI
जहां L एक नियतांक है।
जिसे कुंडली का स्व प्रेरकत्व या स्वप्रेरण गुणांक कहते हैं।
यदि I = 1 हो तो ф = L
अर्थात किसी कुंडली का स्व प्रेरकत्व संख्यात्मक रूप से कुंडली से संबंध चुंबकीय फलक्स के बराबर होता है जबकि कुंडली में एकांक धारा प्रवाहित हो रही हो।
स्व प्रेरकत्व का S.I. पद्धति में मात्रक
हेनरी है तथा विमीय सूत्र
है|
प्रश्न -11) समतल वृताकार कुंडली के स्व प्रेरकत्व के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए। और बताइए कि यह किन-किन कारको पर निर्भर करता है ?
उत्तर – माना r मीटर त्रिज्या की एक समतल वृत्ताकार कुंडली है जिसमें फेरों की संख्या N है तथा कुंडली में धारा I एम्पियर प्रवाहित हो रही है इस धारा प्रवाह के कारण कुंडली के केंद्र पर उत्पन्न
उपयुक्त सूत्र से स्पष्ट है कि समतल वृत्ताकार कुंडली का स्व प्रेरकत्व निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है।
- कुंडली में फेरों की संख्या N पर :– कुंडली में फेरो की संख्या N बढ़ाने पर स्व प्रेरकत्व बढ़ जाता है।
- कुंडली की त्रिज्या r पर :- कुंडली की त्रिज्या r बढ़ाने पर स्व प्रेरकत्व बढ़ जाता है।
- कुंडली के भीतर रखे पदार्थ की चुम्बकन शीलता पर :- यदि कुंडली के भीतर लोहे की छड़ रख दी जाती है तो कुंडली से संबंध चुंबकीय फ्लक्स बढ़ जाता है जिससे कुंडली का स्व प्रेरकत्व भी बढ़ जाता है
प्रश्न -12) धारावाही परिनालिका के स्वप्रेरकत्व के लिए व्यंजक निगमित कीजिए और बताइए कि यह किन-किन कारकों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-
|
चित्र: धारावाही परिनालिका |
माना r मीटर त्रिज्या की एक परिनालिका है जिसकी लंबाई l मीटर है तथा परिनालिका में कुल फेरों की संख्या N है यदि परिनालिका में I एम्पियर धारा प्रवाहित की जाती है तो परिनालिका के भीतर उसकी अक्ष पर उत्पन्न
चुंबकीय क्षेत्र B को परिनालिका के भीतर सभी जगह एक समान माना जा सकता है तब परिनालिका से संबंध
उपयुक्त सूत्र से स्पष्ट है कि परिनालिका का स्वप्रेरकत्व निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है
-
परिनालिका में फेरो की संख्या N पर :- परिनालिका में फेरो की संख्या N बढ़ाने पर स्वप्रेरकत्व बड़ जाता है
-
परिनालिका के अनुप्रस्थ क्षेत्रफल A पर :- परिनालिका का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल A बढ़ाने पर स्व प्रेरकत्व बढ़ जाता है।
-
परिनालिका की लंबाई l पर :- परिनालिका की लंबाई l बढ़ाने पर स्वप्रेरकत्व घट जाता है|
-
परिनालिका के भीतर रखे पदार्थ की चुंबकन शीलता पर :- यदि परिनालिका के भीतर नर्म लोहे की छड़ रख दी जाए तो उसका चुंबकीय फ्लक्स बढ़ जाता है जिससे स्वप्रेरकत्व भी बढ़ जाता है।
प्रश्न-13) दो प्रेरक कुंडलियों का क्षेणी क्रम तथा समांतर क्रम में तुल्य स्वप्रेरकत्व ज्ञात कीजिए ?
उत्तर- माना दो प्रेरक कुंडलियों के स्व प्रेरकत्व L1 व L2 है।
- श्रेणी क्रम में जोड़ने पर:-
|
चित्र: दो प्रेरक कुंडलियों का श्रेणी संयोजन |
श्रेणी क्रम में जुड़ी हुई दोनों कुंडलियों में समान धारा I प्रेरित होगी तथा संपूर्ण चुंबकीय फ्लक्स उनसे अलग-अलग चुंबकीय फ्लक्सों के योग के बराबर होगा।
कुंडली L1 का चुंबकीय फ्लक्स Ø1 (फाई) = L1I
कुंडली L2 का चुंबकीय फ्लक्स Ø2 (फाई) = L2I
यदि संयोजन का तुल्य स्वप्रेरकत्व L है तो कुल चुंबकीय फ्लक्स
Ø = LI
परन्तु Ø = Ø 1 + Ø2
LI = L1I + L2I
LI = I(L1+L2) (For Explain I से I कट )
L = L1 + L2
- समांतर क्रम में जोड़ने पर:-
|
चित्र: दो प्रेरक कुंडलियों का समांतर क्रम |
दो कुंडलियों को समांतर क्रम में जोड़ने पर उनके सिरो पर प्रेरित विद्युत बाह्य बल तो सामान होगा लेकिन प्रेरित धाराएं अलग-अलग होंगी यदि कुंडलियों में प्रेरित धाराएं क्रमशः I1 व I2 है तो संपूर्ण प्रेरित धारा
प्रश्न -14) क्या कारण है कि प्रतिरोध बॉक्स की कुंडलियां तार को दोहरा करके बनाई जाती हैं ?
उत्तर- स्वप्रेरण के प्रभाव को दूर करने के लिए प्रतिरोध बॉक्स के भीतर लगे तार की कुंडलियां तार को दोहरा करके बनाई जाती हैं तार को दोहरा करके लपेटने से तार के आधे भाग में विद्युत धारा एक दिशा में प्रवाहित होती है और शेष आधे भाग में विद्युत धारा विपरीत दिशा में प्रवाहित होती है यह दोनों भाग एक दूसरे के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को निरस्त कर देते हैं तथा कुंडली से संबंध चुंबकीय फ्लक्स शून्य हो जाता है अर्थात कुंडली से स्व प्रेरकत्व का प्रभाव शून्य हो जाता है तथा विद्युत परिपथ में प्रतिरोध बॉक्स को जोड़कर धारा घटाने या बढ़ाने पर परिपथ में प्रेरित धारा उत्पन्न नहीं होती है।
प्रश्न -15) व्हिट स्टोन सेतु के प्रयोग में पहले बैटरी कुंजी और फिर धारामापी कुंजी को दबाया जाता है क्यों ?
उत्तर- व्हिट स्टोन सेतु के प्रयोग में पहले बैटरी कुंजी और फिर धारामापी कुंजी को दबाया जाता है जिस से प्रेरित धारा का प्रभाव ना हो पाए| इसका कारण यह है कि यदि संतुलित व्हीटस्टोन सेतु में धारामापी कुंजी को पहले दबाकर फिर बैटरी कुंजी दवाई जाए तो धरामापी कुंजी दबाते ही परिपथ में धारामापी पहले ही लग जाता है तथा अब बैटरी कुंजी दबाने पर क्योंकि परिपथ में धारा शून्य से बदलकर अधिकतम होने से कुछ समय लेती है अतः इतने समय में धारामापी की कुंडली से संबंध चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन के कारण उत्पन्न प्रेरित धारा धारामापी मे विक्षेप उत्पन्न कर देती है जिससे यह शक होने लगता है कि सेतु संतुलित नहीं है इसके विपरीत यदि बैटरी कुंजी को पहले दबाकर फिर धारामापी कुंजी दवाई जाए जिससे धारामापी के परिपथ में आने से पहले ही परिपथ में धारण नियत हो चुकी होती है अतः धारामापी की कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न नहीं होती है तथा सेतु के संतुलित होने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
प्रश्न -16) अन्योन्य प्रेरण से क्या अभिप्राय है? इसे दर्शाने वाले एक प्रयोग का वर्णन कीजिए। इसके उपयोग भी लिखिए।
उत्तर – अन्योन्य प्रेरण :- किसी एक कुंडली में धारा परिवर्तन के कारण उसके पास रखें दूसरे कुंडली में प्रेरित धारा का उत्पन्न होना अन्योन्य प्रेरण कहलाता है।
वह कुंडली जिसमें धारा परिवर्तन किया जाता है प्राथमिक कुंडली कहलाती है तथा वह कुंडली जिस से प्रेरित धारा उत्पन्न होती है द्वितीय कुंडली कहलाती है।
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चित्र: अन्योन्य प्रेरण का प्रायोगिक प्रदर्शन |
चित्र में प्राथमिक कुंडली P तथा द्वितीय कुंडली S पास पास रखी है जैसे ही प्राथमिक कुंडली P मे लगी कुंजी K को दबाते हैं तो द्वितीय कुंडली S के साथ लगे धारामापी G में क्षणिक विक्षेप उत्पन्न होता है इसका कारण यह है कि कुंजी K को दबाने पर कुंडली P मे धारा बहने से कुंडली S से होकर गुजरने वाले चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है जिसके फलस्वरूप कुंडली S में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है तथा प्रेरित धारा बहने लगती है।
इसी प्रकार जैसे ही कुंडली P मे लगी कुंजी K को छोड़ते हैं तो धारामापी G में पुनः एक क्षण के लिए लेकिन विपरीत दिशा में विक्षेप प्राप्त होता है इसका कारण है कि कुंजी K को खोलकर कुंडली P में धाराप्रवाह बंद करने पर कुंडली S से संबंधी चुंबकीय फ्लक्स घटकर शून्य होता है जिसके फल स्वरुप कुंडली S में प्रेरित धारा बहने लगती है।
अन्योन्य प्रेरण के उपयोग:-
1) ट्रांसफॉर्मर में ।
2) प्रेरित कुंडली में।
प्रश्न -17) अन्योन्य प्रेरण से क्या अभिप्राय है ? इसका मात्रक और विमीय सूत्र लिखिए।
उत्तर -17) यदि प्राथमिक कुंडली में प्रवाहित धारा Ip हो तो द्वितीय कुंडली से संबंध चुंबकीय फ्लक्स फाई s का मान प्राथमिक कुंडली में प्रवाहित धारा Ip के अनुक्रमानुपाती होगा।
जहां M एक नियतांक है जिसे इन कुंडलियों का अन्योन्य प्रेरण गुणांक या अन्योन्य प्रेरकत्व कहते हैं।
अर्थात दो कुंडलियों के बीच अन्योन्य प्रेरकत्व संख्यात्मक रूप से प्राथमिक कुंडली में एकांक धारा प्रवाहित करने पर द्वितीय कुंडली से संबंध चुंबकीय फ्लक्स के बराबर होता है
अन्योन्य प्रेरकत्व का S.I. पद्धति में मात्रक हेनरी है तथा विमीय सूत्रहै |
प्रश्न -18) दो समतल वृताकार कुंडलियों के बीच अन्य प्रेरकत्व की गणना कीजिए और बताइए कि यह किन-किन कारको पर निर्भर करता है |
उत्तर – माना दो समतल वृताकार कुंडलियां P व S एक दूसरे के समीप सम अक्षीय रखी है प्राथमिक कुंडली में फेरो की संख्या N1 है तथा द्वितीय कुंडली में फेरो की संख्या N2 है माना प्राथमिक कुंडली P की त्रिज्या r1 तथा द्वितीय कुंडली S की त्रिज्या r2 है प्राथमिक कुंडली P में धारा Ip बहाने से उसके केंद्र पर उत्पन्न
उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि दो समतल वृताकार कुंडलियों के मध्य अन्योन्य प्रेरकत्व निम्न कारकों पर निर्भर करता है|
-
प्राथमिक कुंडली में फेरो की संख्या N1 पर
-
द्वितीय कुंडली में फेरो की संख्या N2 पर
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द्वितीय कुंडली के क्षेत्रफल A पर
-
प्राथमिक कुंडली की त्रिज्या r1 पर
-
कुंडलियों के भीतर रखे क्रोड़ पदार्थ पर
प्रश्न-19) दो समाक्षीय लम्बी परिनालिकाओ के बीच अन्योन प्रेरकत्व की गणना कीजिये ? और इन्हें प्रभावित करने वाले करक लिखिए |
उत्तर –माना दो समाक्षीय परिनालिका P व S है प्राथमिक कुंडली P में फेरो की संख्या N1 तथा द्वितीय कुंडली S में फेरो की संख्या N2 है प्राथमिक कुंडली में धारा I बहाने पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र
उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि दो समाक्षीय लंबी परिनालिकाओं का अन्योन प्रेरकत्व निम्न कारकों पर निर्भर करता है-
1. प्राथमिक कुंडली में फेरो की संख्या N1 पर |
2. द्वितीय कुंडली में फेरो की संख्या N2 पर |
3. द्वितीय कुंडली के क्षेत्रफल A पर |
4. प्राथमिक कुंडली की त्रिज्या r1 पर |
5. कुंडलियों के भीतर रखे क्रोड़ पदार्थ पर |
प्रश्न-20) स्वप्रेरण तथा अन्योन प्रेरण में अंतर लिखिए ?
उत्तर – स्वप्रेरण तथा अन्योन प्रेरण में अंतर:-
स्वप्रेरण
|
अन्योन प्रेरण
|
किसी कुंडली में धारा बदलने से उसी कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होने की घटना को स्वप्रेरण कहते हैं
|
किसी कुंडली में धारा बदलने से उसके पास रखी अन्य कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होने की घटना को अन्य उत्प्रेरण कहते हैं
|
प्रेरित धारा कुंडली में बहने वाली मूल धारा को सीधे प्रभावित करती है
|
प्रेरित धारा द्वितीय कुंडली में बहती है अतः यह प्राथमिक कुंडली में बहने वाली मूल धारा को सीधे प्रभावित नहीं करती है
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स्वप्रेरण के लिए एक कुंडली आवश्यक होती है
|
अन्योन प्रेरण के लिए दो कुंडली आवश्यक होती हैं
|
प्रश्न-21) दो कुंडलियों P तथा S का स्व प्रेरकत्व L1 व L2 है यदि इनके बीच आदर्श फ्लक्स युग्मन है तो सिद्ध कीजिए कि इन कुंडलियों के मध्य अन्योन प्रेरकत्वहोगा|
अथवा
दो कुंडलियों के मध्य स्वप्रेरकत्व और अन्योन प्रेरकत्व में संबंध स्थापित कीजिए?
उत्तर- माना एक कुंडली (परिनालिका) p में फेरों की संख्या N1 है तथा इसकी लंबाई l है तथा इसका अनुप्रस्थ क्षेत्रफल A है इसमें धारा I बहाने से कुंडली से संबंध चुंबकीय फ्लक्स
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